लेखनी कविता - पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं

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पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं  पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं  ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं  मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में  मगर ...

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